Friday, February 5, 2010
भाषाएँ अपनी बात कहने ..दूसरों तक पहुचाने के लिए बनी थी जब भी कभी बनी थी ....ओर जंहा तक भाषा अथवा किसी व्यक्ति से भी प्यार ओर उसकी इज्जत का हे वो प्यार स्वयं होता हे किसी के मारने या डराने से नहीं होता ...अब हमारे देश में भाषाओँ को लेकर तना-तनी चल रही हे वो प्यार कम ओर ताकत का प्रदर्शन ज्यादा हे ....इस देश में इतने अहम् मुद्दे हैं भाषाओँ के अलावा जिन पर ध्यान हम नहीं दे रहे हैं ....जब देश को आजाद कराने का समय था तब कोई मराठी ,बंगाली ,पंजाबी ,मलयाली ,तेलगु ,असमी ,मणिपुरी ,गुजरती आदि-इत्यादि नहीं था ....कल्पना कीजिये तब भी सारे राज्य अपनी -अपनी भाषाओँ को लेकर लड़ते रहते या अब सीमा पर सारे जवान इसी मुद्दे पर लड़ते रहे ओर दुश्मन देश इन्हें मारता रहे ....एक देश के रूप में हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा हे वो माँ कि भाषा हे या नहीं सवाल ये नहीं था जब मै भारतीय सविंधान की बात कर रहा था ...ओर इसके अलावा कोई भी व्यक्ति कितनी भी भाषाएँ सीखे -पढ़े ये व्यक्ति विशेष की क़ाबलियत पर हे ....ओर किसी भी भाषा का विकास तभी होता हे जब उसमे नए-नए शब्दों को आत्मसात करने की क़ाबलियत होती हे अब हम अंग्रेजी की बात करें तो उसमे दुनिया की हर भाषा के शब्द हे वैसा ही हिंदी में भी हे ...लोग-बाग लोह्पथ गामनी नहीं बोलते सीधा ट्रेन बोलते हैं या फिर रेलगाड़ी ...पानी बोलते हैं जल नहीं ...ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं कुल मिला कर बात इतनी सी हे दोस्तों की भाषा का जन्म जोड़ने के लिए हुआ था तोड़ने के लिए नहीं ....वो कोई भी भाषा क्यों ना हो ....हमे भाषा के नाम पर हो रही राजनीति से बचने के कोशिश तो करनी ही चहिये अगर हम उसका विरोध ना भी कर पा रहें हों ....
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