Wednesday, February 29, 2012

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"खँडहरों सी भावशून्य आँखें
नभ से किसी नियंता की बाट जोहती हैं।
बीमार बच्चों से सपने उचाट हैं;
टूटी हुई जिंदगी
आँगन में दीवार से पीठ लगाए खड़ी है;
कटी हुई पतंगों से हम सब
छत की मुँडेरों पर पड़े हैं।"
------------------दुष्यंत कुमार