Monday, September 27, 2010

जबसे कोमन वेल्थ खेलों के घपले जनता के सामने आये हैं सरकार बड़ी खुश है कि चलो जनता का ध्यान कंही तो लगा वर्ना रोज़ वही गरीबी ,भूक मरी , सड़ता अनाज ,बेरोज़गारी , आबादी, कोर्ट , नक्सल, आतंकवादी ,कश्मीर ,पाकिस्तान ,लोख्सभा , बिल ,मंजूरी. पेट्रोल के दाम ,सब्जी के दाम ,टेक्स में बढोतरी ,महगाई , मंदिर-मस्जिद ,किसानो की आत्म हत्याएं...बिजली ,बाढ़ पानी आदि इत्यादि कितने मोर्चे खुले थे अब बस एक कोमन वेल्थ खेल ....सब इसके बुराई करो कुछ तारीफ करो इनके कामयाब होते ही देश की सारी समस्याएँ खत्म ...संसेक्स बढ़ता रहे बस ....

Monday, August 30, 2010

विचित्र देश है हिंदुस्तान यंहा पर हिन्दुस्तानी नहीं रहते ,रहतें हैं तो केवल पंजाबी ,गुजराती , मराठी ,बंगाली.मलयाली ,दलित ,मुस्लिम ,ईसाई,सिख,बिहारी, वगेरह जी हाँ आपको इस देश में कुछ भी करना है तो आपको किसी न किसी कोटे में होना पड़ेगा अगर आप सामान्य हिन्दुस्तानी हैं तो आप सबसे पीछे खडें हैं, सब कोटे भर जाने के बाद आपकी तरफ ध्यान दिया जायेगा ...कभी कभी लगता है कि क्या सामान्य होना एक अपराध है ...इस सब में सबसे हैरानी की बात तो ये है कि ये सब कानूनी मान्यता प्राप्त हैं, क्यों नहीं इस देश में सब के लिए एक ही कानून है ...योग्यता ही क्यों न एकमात्र पैमाना हो ...जब स्कूल ,कोलेज में दाखिले के समय से ही कोटे के आधार पर दाखिला होता हो तब ये उम्मीद रखना कि देश में आने वाली पीढ़ी समझदार होगी, कितनी समझदारी है .... क्योंकि हम बच्चों को ये ही तो सिखा रहें चिंता न करो कोटा है सुरक्षित तुम्हारे लिए... योग्य न भी हुए तो कोई बात नहीं ....

Tuesday, April 6, 2010

SAVE PAPER, SAVE TREES

just a few tips to help save paper:

  1. Ideal thoughts, reminders, classroom pranks - USE YOUR MOBILE PHONES, LAPTOPS and not paper slips.
  2. Regulate office circulars through e-mails or internal computer networks, instead of making endless photocopies.
  3. Students, please use your i-pads and computers to help cram up for exams.
  4. Be creative. use all the used paper and/or plastic bags around the house to wrap gifts. The result is often far more attractive than the run-of-the-mill gift papers.
  5. Try to borrow used books from seniors and kindly pass them down to your juniors the year after.
  6. Recycle, Reuse paper.
  7. Use the blank parts of papers that have got misprinted or mis-copied.
  8. Avoid taking prints of your lists and artworks unless it is absolutely necessary to do so.

    Friday, March 19, 2010

    वसुधा ...सहती सब चुपचाप / ना करती कोई प्रतिकार / पर कब तक ? कभी तो करवट लेगी ही / तुम , जो उसकी छाती पर चढ़ छीन लेना चाहते हो उससे , उसका होना भी / कल्पना करो उस क्षण की / जब उसके भीतर सुलगती आग / फटेगी धधकती जवालामुखी बन ............

    Monday, March 8, 2010

    Women's Day -- Women Reservation Bill

    Nothing is unachievable anymore.
    There isn't even a single walk of life, where women lag behind today.

    Only one hurdle remains to be conquered and that is the jealousy and wrath
    women face from the male gender.
    Yes, it is still there and it still bothers.

    The solution lies in bringing up the boys such that they learn to respect females
    and see them in an impartial light. But the onus of achieving this also lies with
    women only.

    Its a difficult task, more so because a mother like that would stand as an odd one
    out amongst the rest. Yet, it shall be worth it. I hope I live to see the day when
    male chauvinism is despised by men also.

    Yesterday was the International Women's Day. And 100th one at that!!!
    For the first time in the 82 year old history of OSCARS, a woman bagged the award
    for the best director.

    And here, at home, the Women's Reservation Bill was not passed. ONCE AGAIN.
    There was resistance, uproar, adjournment, indecency and what not..
    But hats off to Mrs. Sonia Gandhi who took the bull by its horns. She staked her
    party's governance (once again, just as she did to have the Nuclear Treaty
    passed).

    any minute now, news of the bill having passed might be aired.
    I am waiting.
    My fingers are not crossed.
    I am happy and patient and most of all, proud.

    Sunday, March 7, 2010

    कभी जली थी होलिका , अब जलता प्रहलाद ...आओ , रंगों के इस मोसम में... केवल रंगों में अपने चेहरे ना छुपायें... जो बेहतर हो इन्सान ( इंसानियत ) के लिए उसे भी कुछ अपनाएं... होली तो हैप्पी है ही , इंसानों को भी कुछ हैप्पी बनायें ...............

    Saturday, March 6, 2010

    काश बड़े भी बच्चे होते /कुछ सिम्पल कुछ सच्चे होते /प्यारे -प्यारे बंधन होते /रिश्ते यूँ ना कुछ कच्चे होते /लफड़े तब भी होते ,लेकिन लफड़े भी कुछ अच्छे होते /दुनिया कितनी अच्छी होती /अगर यंहा बस बच्चे होते .............

    एक गीत मेरे बच्चों के लिए किये पुराने नाटक से .....

    Sunday, February 7, 2010

    बातें भी अब कुछ कहती नहीं......
    करतीं हैं सिर्फ शोर .......

    Friday, February 5, 2010

    बात छोटी सी थी ना जाने क्यों बड़ी हो गई ओर अपनी समझ के बाहर हो गई ......"भाषा इंसानों के लिए या फिर इन्सान भाषाओँ के लिए ......"
    भाषाएँ अपनी बात कहने ..दूसरों तक पहुचाने के लिए बनी थी जब भी कभी बनी थी ....ओर जंहा तक भाषा अथवा किसी व्यक्ति से भी प्यार ओर उसकी इज्जत का हे वो प्यार स्वयं होता हे किसी के मारने या डराने से नहीं होता ...अब हमारे देश में भाषाओँ को लेकर तना-तनी चल रही हे वो प्यार कम ओर ताकत का प्रदर्शन ज्यादा हे ....इस देश में इतने अहम् मुद्दे हैं भाषाओँ के अलावा जिन पर ध्यान हम नहीं दे रहे हैं ....जब देश को आजाद कराने का समय था तब कोई मराठी ,बंगाली ,पंजाबी ,मलयाली ,तेलगु ,असमी ,मणिपुरी ,गुजरती आदि-इत्यादि नहीं था ....कल्पना कीजिये तब भी सारे राज्य अपनी -अपनी भाषाओँ को लेकर लड़ते रहते या अब सीमा पर सारे जवान इसी मुद्दे पर लड़ते रहे ओर दुश्मन देश इन्हें मारता रहे ....एक देश के रूप में हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा हे वो माँ कि भाषा हे या नहीं सवाल ये नहीं था जब मै भारतीय सविंधान की बात कर रहा था ...ओर इसके अलावा कोई भी व्यक्ति कितनी भी भाषाएँ सीखे -पढ़े ये व्यक्ति विशेष की क़ाबलियत पर हे ....ओर किसी भी भाषा का विकास तभी होता हे जब उसमे नए-नए शब्दों को आत्मसात करने की क़ाबलियत होती हे अब हम अंग्रेजी की बात करें तो उसमे दुनिया की हर भाषा के शब्द हे वैसा ही हिंदी में भी हे ...लोग-बाग लोह्पथ गामनी नहीं बोलते सीधा ट्रेन बोलते हैं या फिर रेलगाड़ी ...पानी बोलते हैं जल नहीं ...ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं कुल मिला कर बात इतनी सी हे दोस्तों की भाषा का जन्म जोड़ने के लिए हुआ था तोड़ने के लिए नहीं ....वो कोई भी भाषा क्यों ना हो ....हमे भाषा के नाम पर हो रही राजनीति से बचने के कोशिश तो करनी ही चहिये अगर हम उसका विरोध ना भी कर पा रहें हों ....

    Thursday, February 4, 2010

    ऐसे ही एक बात .... "मंदिर ,मस्जिद ,चर्च ओर गुरुद्वारों में जाने वाले कितने लोग अपने-अपने भगवानो की मानते होंगे क्योंकि लगभग 90%लोग भगवान मानते हैं अगर ये लोग अपने भगवानों की मानते हैं तो दुनिया में कुछ गलत कुछ बुरा होना ही नहीं चाहिए " ...आपको क्या लगता हे....?
    एक तरफ अमन की आशा .... दूसरी ओर नफरत की भाषा ......

    Monday, February 1, 2010

    कपिल सिबल ने कहा कि बच्चों की ख़ुदकुशी के लिए माँ बाप जिम्मेदार , पहले सरकार ने कहा three idiots फिल्म जिम्मेदार अब माँ बाप ओर जिस न्यूज़ चैनेल पर ये खबर उसी पर दूसरी खबर ये कि दिल्ली में नर्सरी के दाखिले के लिए पहली कट ऑफ़ लिस्ट जारी हुई .......कबीर साहब ने सही ही कहा था कि "बरसे कम्बल .... भीगे पानी" ..............

    Saturday, January 23, 2010

    वो
    हारा हुआ अपने आप से
    जीतने की कोशिश मे लड़ता हुआ दूसरों से ...
    क्या नहीं जानता...
    खुद से हारा हुआ
    दूसरों को हराकर भी नहीं जीत सकता कभी ...

    Monday, January 18, 2010

    वो
    खोई -खोई सी रहती हे
    सपनों में
    यथार्त से कतराती-बचती-भागती
    पर
    सीखना होगा उसे
    ना केवल खोना उनमे
    बल्कि पाना उन्हें
    बिना विचलित हुए
    यथार्त की धरती पर खड़े होकर ...............