Friday, March 19, 2010

वसुधा ...सहती सब चुपचाप / ना करती कोई प्रतिकार / पर कब तक ? कभी तो करवट लेगी ही / तुम , जो उसकी छाती पर चढ़ छीन लेना चाहते हो उससे , उसका होना भी / कल्पना करो उस क्षण की / जब उसके भीतर सुलगती आग / फटेगी धधकती जवालामुखी बन ............

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