Thursday, February 4, 2010
Monday, February 1, 2010
कपिल सिबल ने कहा कि बच्चों की ख़ुदकुशी के लिए माँ बाप जिम्मेदार , पहले सरकार ने कहा three idiots फिल्म जिम्मेदार अब माँ बाप ओर जिस न्यूज़ चैनेल पर ये खबर उसी पर दूसरी खबर ये कि दिल्ली में नर्सरी के दाखिले के लिए पहली कट ऑफ़ लिस्ट जारी हुई .......कबीर साहब ने सही ही कहा था कि "बरसे कम्बल .... भीगे पानी" ..............
Saturday, January 23, 2010
Monday, January 18, 2010
Monday, December 14, 2009
रोज़ आन्दोलन ...कभी तेलंगाना के लिए कभी मराठियों के लिए कभी कश्मीर के लिए कभी गुजरात के लिए ,कभी पूर्वांचल के लिए कभी उतरांचल के लिए कभी मंदिर के लिए कभी मस्जिद के लिए ,कभी कांग्रेस के लिए कभी बीजेपी के लिए तो कभी समाजवादियों के लिए तो कभी दलितों के लिए या फिर कभी कम्यूनिस्टों के लिए कभी इस प्रान्त के लिए तो कभी उस प्रान्त के लिए कभी इस धर्म के लिए तो कभी उस धर्म के लिए अलग -अलग पार्टियाँ अलग -अलग मुद्दे, आन्दोलन ही आन्दोलन ...एक बार मिल तो ले ,और महगाई बढती ही जा रही है किसी गरीब की कन्या की तरह दिन दूनी रात चोगनी , आम आदमी के लिए जीना महंगा और मौत सस्ती.... पर न कोई आन्दोलन ना ही कोई विरोध .....हे ना अजूबा ....
Saturday, December 12, 2009
महानगर ....
एक भीड़ ...
...भागती ,दौड़ती....
कहते हैं कि कभी नहीं रूकती ...
मनुष्य यंहा खो गया एक भीड़ में...
और इस भीड़ में खोती जा रही मनुष्यता मनुष्य के साथ ...
भीड़ के साथ कदम से कदम मिला भागते -दौड़ते रहने की मजबूरी में....
भीड़
जिसका कोई आकर -प्रकार ,कोई बनावट नहीं होती
कोई सोच ,कोई समझ ,कोई विचार नहीं होती भीड़ ..
फिर भी न जाने क्या सुख ,क्या संतुष्टि मिलती है
हिस्सा होने में भीड़ का
न जाने क्यों डर लगता है ,भीड़ से बिछड़ जाने का ....
हाँ ,जानता हूँ
और उसी जानने की वजह से डरता हूँ
कि अपनी कोई सोच ,कोई समझ ,कोई विचार
कर देंगे मुझे दूर
इस भीड़ से ,और
इसलिए
में ...अपनी अपनी सोच -समझ -विचार को कुचल डालना चाहता हूँ
सर उठाने से पहले ....
और हिस्सा बना रहता हूँ
भीड़ का ..........
एक भीड़ ...
...भागती ,दौड़ती....
कहते हैं कि कभी नहीं रूकती ...
मनुष्य यंहा खो गया एक भीड़ में...
और इस भीड़ में खोती जा रही मनुष्यता मनुष्य के साथ ...
भीड़ के साथ कदम से कदम मिला भागते -दौड़ते रहने की मजबूरी में....
भीड़
जिसका कोई आकर -प्रकार ,कोई बनावट नहीं होती
कोई सोच ,कोई समझ ,कोई विचार नहीं होती भीड़ ..
फिर भी न जाने क्या सुख ,क्या संतुष्टि मिलती है
हिस्सा होने में भीड़ का
न जाने क्यों डर लगता है ,भीड़ से बिछड़ जाने का ....
हाँ ,जानता हूँ
और उसी जानने की वजह से डरता हूँ
कि अपनी कोई सोच ,कोई समझ ,कोई विचार
कर देंगे मुझे दूर
इस भीड़ से ,और
इसलिए
में ...अपनी अपनी सोच -समझ -विचार को कुचल डालना चाहता हूँ
सर उठाने से पहले ....
और हिस्सा बना रहता हूँ
भीड़ का ..........
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